श्रमिकों के विशेष वर्गों के लिये कार्यक्रम

शासन व्दारा कई विशिष्ट श्रमिक वर्गों के संरक्षण एवं कल्याण के लिये वैधानिक प्रावधान लागू है, तद्नुसार कार्यक्रम प्रारंभ किये गये हैं। इनमें महिला श्रमिक, बाल श्रमिक, बीड़ी व कृषि मजदूर शामिल है। इनके संबंध में श्रम कानूनों के प्रवर्तन तथा अन्य कार्यक्रमों का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है:-

महिला श्रमिक

समस्त श्रम कानूनों में पुरूष श्रमिकों की तुलना में महिला श्रमिकों के संरक्षण के विशेष प्रावधान है। समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 एवं प्रसूति हितलाभ अधिनियम, 1961 में महिला श्रमिकों के हित संरक्षण के लिये विशेष प्रावधान रखे गए है। समान पारिश्रमिक हित संरक्षण हेतु समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 के अंतर्गत महिला श्रमिकों को समान कार्य के लिए पुरूषों के समान वेतन पाने का अधिकार है और इसमें भेद-भाव करना दंडनीय अपराध है। समान परिश्रमिक अधिनियम के तहत महिलाओं के असमान वेतन की शिकायतें, दावा प्रकरणों का श्रवण करने के लिये विभाग के समस्त श्रम अधिकारियों एवं सहायक श्रमायुक्तों को प्राधिकारी नियुक्त किया गया है व उक्त संबंध में उप श्रमायुक्त को अपीलीय अधिकारी नियुक्त किया गया है, साथ ही राज्य की समस्त पंचायतों को उक्त अधिनियम के प्रयोजनार्थ अर्थात् भुगतान हुये असमान वेतन के संबंध में निरीक्षक की शक्तियां प्रदान की गई है। प्रसूति हितलाभ अधिनियम 1961 के अंतर्गत महिला श्रमिकों को प्रसूति काल में 12 सप्ताह का सवैतनिक अवकाश एवं ृे 2,500/- चिकित्सा बोनस के प्रावधान किये गये है।

बाल श्रम

ऐसा बालक या बालिका जिसने 14 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं की हों, के द्वारा पैसा अथवा वस्तु के बदले किसी नियोजक को अपना श्रम दे रहा हो बाल श्रमिक कहलाता है। बाल श्रमिक (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 के अंतर्गत 14 वर्ष से कम आयु के बालकों का नियोजन कतिपय नियोजनों में प्रतिबंधित है। इस अधिनियम के अतंर्गत भारत शासन द्वारा 65 प्रक्रियाओं एवं 18 उपजीविकाओं में बाल श्रमिकों का नियोजन वर्जित किया गया है। इसी प्रकार कारखाना अधिनियम 1948, मोटर यातायात श्रमिक अधिनियम 1961, बीड़ी सिगार कामगार (नियोजन की शर्तें) अधिनियम 1966, एवं छत्तीसगढ़ दुकान स्थापना अधिनियम 1958, के अतंर्गत बाल श्रमिकों का नियोजन पूर्णतः निषेध किया गया है।